पौधे
ग्रेट बनयान ट्री
ग्रेट बनयान ट्री (सीबीटी) एजेसी बोस इंडियन बॉटेनिक गार्डेन का एक शानदार जीवंत पौराणिक वस्तु है और यह गार्डेन का एक प्रतिष्ठित संरचना का कार्य करती है | यह न केवल भारतीय आगंतुकों के लिए बल्कि विदेशी प्रतिनिधियों के लिए भी अनोखे आकर्षणों में से एक है | जीबीटी ने अपने विशाल कैनोपी के कारण 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स' में जगह पाती है |स्थानीय लोगों के बीच 'गतिशील' एवं अमर वृक्ष के नाम से ख्यातिप्राप्त यह निश्चित रूप से विश्व के सबसे बड़े वस्तुओं में से एक है | गार्डेन में प्रदर्शित विदेशी पौधों जैसे बम्बूज, पाम्स, कैक्टस एवं गुद्देदार पौधों आदि की तुलना में जीबीटी वर्षभर सबसे अधिक आगंतुकों का ध्यान अपनी और खींचता है | वानस्पतिक रूप से फिकस बेंगालेंसिस एल. नाम से ज्ञात एवं मोरेसी परिवार से सम्बंधित यह वृक्ष भारत का मूलस्थानिक है | फल लाल रंग में एक छोटे अंजीर की तरह होता है एवं यह खाने योग्य नहीं होता है | यह 270 वर्ष से भी अधिक पुराना है एवं क्षेत्रफल में फैलाव की दृष्टिकोण से यह विशाल वृक्ष है | इस वृक्ष का रोपण आदि संबंधी कोई स्पष्ट इतिहास नहीं है | लेकिन यह उनीसवीं सदी की यात्रा पुस्तिका में आश्चर्यजनक वृक्ष (डेट पाम) के रूप में वर्णित है, जब कर्नल रॉबर्ट किड ने 1787 में इस गार्डेन की शुरुआत किया था | जीबीटी 1864 एवं 1867 के दो भीषण चक्रवातों के कारण बर्बाद हो गया जिसके दौरान इसके कुछ मुख्य शाखाओं में फंगस का जोरदार प्रहार हुआ | 1925 में वुड रोटिंग फंगस से संक्रमित हो जाने के कारण इसके मुख्य धड़ के 16 मी की हिस्से को काटकर अलग कर दिया गया | बहुत बड़ी संख्या में एरियल जड़ें जो इसके शाखाओं से लटकती हैं एवं जमीन में लंबवत पहुँचती है और अनेकों धड़ों की तरह दिखती है, इसी कारण जीबीटी एक विशिष्ट वृक्ष से अलग एक लघु वन की तरह प्रतीत होती है | इसलिए जब शाखाएं क्षैतिज रूप में बढ़ जाती हैं तो उन्हें न केवल स्तम्भ सदृश्य प्रोप जड़ों से सहारा मिलता है बल्कि उन्हें पोषण भी प्राप्त होता है | इन एरियल जड़ो को प्रारम्भ में बम्बू चैनल से होकर गुजारा जाता है एवं इन्हे बड़े ध्यान से बढ़ने दिया जाता है एवं अंत में जमीन पर एक खास स्थिति को ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिससे बढ़ते हुए क्षैतिज शाखाओं को अधिक से अधिक सहारा मिले | यह जानना बड़ा दिलचस्प है कि अपने मुख्य धड़ की अनुपस्थिति में भी, यह वृक्ष अभी भी अपने अस्तित्व और सजीवता को बरकरार रखी हुई है | वर्तमान में इस वृक्ष ने 18918 वर्ग फीट क्षेत्रफल में स्थित है | वृक्ष का वर्त्तमान शीर्ष की परिधि 486 मी है एवं सबसे ऊँची शाखा 24.5 मी तक बढ़ गयी है | आज की तारीख में एरियल जड़ों की कुल संख्या 4033 है जो प्रोप जड़ों की तरह जमीन तक पहुँचती हैं | इस प्रकार, जीबीटी लम्बा खड़ा है एवं गार्डेन का सबसे बुजुर्ग नागरिक की तरह है और इस तरह यह इस क्षेत्र की सुंदरता एवं पवित्रता में वृद्धि कर रही है |
कैनन बॉल ट्री
उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका के मूलस्थानिक लेसिथिडेसी परिवार के कॉरोपिटा गुयानेंसिस ऑबल. का नामकरण 1775 में फ्रांसीसी वनस्पतिज्ञ जीन बैपटिस्ट क्रिस्टोफर फुजी ओब्लेट द्वारा किया गया | यह एक विशाल पर्णपाती वृक्ष है जो 35 मी की ऊंचाई तक बढ़ती है | गुच्छे में पुष्प सीधे धड़ से निकलते हैं | पुष्प-केसर दो कतारों में अंडाशय के चारो ओर रिंग का निर्माण करते हैं एवं वर्तिकाग्र के ऊपर एक टोपी सी आकृति होती है | फ्रूट्स ग्लोबोज,वुडी 12-25 सेमी से अधिक होती है |
इस वृक्ष को इसके सुगन्धित पुष्पों एवं घने कैनोपी के लिए मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय देशों के बगीचों में लगाया जाता है | इसे धार्मिक महत्त्व हेतू मंदिरों में भी लगाया जाता है |
इस वृक्ष के विभिन्न भागों का प्रयोग उच्च रक्तचाप, ट्यूमर,दर्द एवं सूजन के इलाज में किया जाता है | इस पौधे का प्रयोग सामान्य सर्दी, पेटदर्द, त्वचा रोगों, मलेरिया एवं दाँत दर्द में भी किया जाता है |
भारत में, यह वृक्ष हिन्दुओं के लिए पवित्र है, जो यह मानते हैं कि इसका टोपीनुमा पुष्प नाग की तरह दिखती है, एवं यह शिव मंदिरों में उगता है |
मैड ट्री
टेरिगोटा अलाटा (रॉक्सब.) आर. बर. वर. इरेगुलेरिस (डब्लू.डब्लू. स्मिथ) देब एवं बासु, पादप जगत का एक विचित्र सदस्य है जो हमारे देश का ही मूलस्थानिक है जिसकी अद्भुत मनमोहकता प्रकृति के अजूबे पर हैरान होने के लिए मजबूर करता है | मैड ट्री अनोखा है क्योंकि इस वृक्ष की पत्तियां रूप , आकार, स्वरुप एवं विभाजन की प्रअवस्था तथा लेमिना का लोबेशन या पर्ण धार इस हद तक होते हैं कि इस लम्बे पर्णपाती वृक्ष की कोई भी दो पत्तियां एक जैसे नहीं होते हैं | हैरान करने वाले लक्षणों से युक्त इसके मातृ पादप को उगाया गया एवं वर्ष 1870 में टेरिगोटा अलाटा (रॉक्सब.) आर. बर. के बीजों से एजेसी इंडियन बॉटेनिक गार्डेन, हावड़ा में पृथक किया गया तथा गार्डेन में लगाया गया | गहन अध्ययन ने यह साबित कर दिया है की मैड ट्री की पत्तियां आकृति एवं आकार में एक जैसे नहीं होते हैं क्योंकि इसके गुणसूत्र में सेटेलाइट जिन ( गुणसूत्र का सीमावर्ती भाग द्वितीयक संकुचन से परे होता है, इसके पास किसी ख़ास गुणसूत्र के लिए स्थिर आकृति एवं आकार होता है ) होता है जो स्थिति बदलता रहता है |
बाओबब ट्री
बोम्बासिएसी परिवार का एडनसोनिया डिजिटाटा एल. उष्णकटिबंधीय अफ्रिका मूल का पादप है एवं मेडागास्कर का राष्ट्रीय वृक्ष है | ऐसा माना जाता है की भारत सहित अन्य एशियाई देशों में पहुँचने के पहले इस वृक्ष को अरब के व्यापारियों ने संग्रहित किया एवं मिस्र में लगाया था | यह वृक्ष प्रजनन शक्ति का प्रतिक है एवं विभिन्न उद्देश्यों से इसकी पूजा की जाती है | यह वृक्ष मुख्यतः भोजन एवं औषधि प्रदान करने में उपयोगी है, इसलिए इसका नाम 'ट्री ऑफ हेवेन' या 'ट्री ऑफ लाइफ' है | इसके धड़ की विशालता एवं इसके शाखाओं का विशाल आकार इसे विशिष्ट वृक्ष बनाता है | एक परिपक्व वृक्ष के मुख्य धड़ की परिधि 25-35 मी तक होती है | यह सबसे विशाल गुद्देदार व जलशोषक वृक्ष है जो लम्बे सूखाड़ की अवधि में जीवित रहने के लिए अपने धड़ एवं शाखाओं के अंदर 1 लाख लीटर से भी अधिक पानी धारण कर सकता है | वृक्ष का जीवन काल 3000- 6000 वर्ष अनुमानित है जिसे पादप जगत का सबसे लम्बा जीवन काल माना जाता है | पत्तियों में उच्च मात्रा में विटामिन सी होती है | फल खाने योग्य होते हैं एवं विटामिनों, प्रोटीनों, एंटीऑक्सीकारकों तथा खनिजों के अच्छे स्रोत होते हैं |
सेंडल वुड ट्री
सेन्टलेसि परिवार का सेंटालम एल्बम एल. एक छोटा उष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जो मूल रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है | यह पौधा दूसरे वृक्ष जाति के जड़ों को आश्रय देता है, लेकिन अपने होस्ट को बिना ज्यादा नुक्सान किए | यह एक सौ वर्षों तक जीवित रह सकता है | सेंडलवुड तेल का बहुत अधिक प्रयोग लोक औषधि के अंतर्गत सामान्य सर्दी, ब्रोनकाइटिस, त्वचा दोषो, ह्रदय रोगों, आम दुर्बलता, बुखार, मूत्रमार्ग में संक्रमण, मुँह एवं ग्रसनी में सूजन, लिवर एवं पित्ताशय संबंधी दोष एवं अन्य व्याधियों के इलाज के लिए किया जाता है |
इस जाति को आईयूसीएन द्वारा लुप्तप्राय की सूची में रखा गया है क्योंकि वन में इसकी संख्या निरन्तर घट रही है |
रूद्राक्ष वृक्ष
इलियोकार्पस सेराटस एल. चौड़ी पत्तियों युक्त एक बड़ा सदाबहार वृक्ष है जिसके बीज का प्रयोग हिंदू धर्म में पारम्परिक रूप से माला फेरने में किया जाता है | यह दक्षिण पूरब एशिया में मूल रूप से पाया जाता है लेकिन इसे विश्वभर में सजावटी वृक्ष के रूप में लगाया गया है | रूद्राक्ष के बीज जब पूरी तरह पक जाते हैं तो ये नीले रंग के बाह्य आवरण से ढक जाते हैं | फलों में उच्च मात्रा में स्टार्च एवं शुगर लेकिन निम्न मात्रा में प्रोटीन एवं लौह पाया जाता है एवं इनका प्रयोग पेचिश तथा दस्त के इलाज के लिए किया जाता है | इसे सूजे हुए मसूड़ों के इलाज में भी प्रयोग किया जाता है |
कृष्णा बट:
मोरेसी परिवार का फिकस कृष्णे सी. डीसी. को कृष्णा फिग, कृष्णा का बटर कप एवं मक्खन कटोरी के नाम से जाना जाता है | मूल रूप से भारत में पाए जाए वाले आचार्य जगदीश चंद्र बोस इंडियन बॉटेनिक गार्डेन, हावड़ा के पास स्थित किसी निजी गार्डेन में उपलब्ध इस जाति की ओर सबसे पहले डेविड प्रैन (उस समय के भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण,कोलकाता के निदेशक) को 1896 में बताया गया | वहां से इसकी दो टहनियों को काटा गया एवं गार्डेन में समावेशित किया गया और फिर बाद में इस पौधे की टहनियों को भारत के साथ साथ देश से बाहर के विभिन्न गार्डेनों में वितरित किया गया | यह फैले हुए शाखाओं एवं वायवीय जड़ों वाली एक विशाल, तेजी से बढ़ने वाली, सदा बहार वृक्ष है जिसकी लंबाई 30 मी तक होती है | अपने पत्तियों के विशिष्ट प्रकृति के कारण इसे असामान्य फिग जातियों में से एक माना जाता है | इस वृक्ष की एक अनोखी विशेषता यह है कि इसके पत्ती के आधार में पॉकेट जैसा घुमाव होता है, इस शंक्वाकार पत्तियों के निर्माण के संबंध में इस जाती से जुडी अनेक भारतीय लोककथाएँ प्रचलित हैं | पौराणिक कथाओं में से एक कथा यह बताती है कि भगवान् कृष्णा मक्खन के बड़ी शौक़ीन थे और यहाँ तक की इसे चुराते भी थे | एक बार माता यसोदा से पकडे जाने पर उसने इस वृक्ष की पत्ती में माखन को लपेटकर छुपाने का कोशिश किया था | उस समय से पत्तियों की आकृति इस तरह की है |
सभी भागों का प्रयोग कफ के इलाज में होता है | यह आंत के लिए कसैला होता है; अल्सर, वोमिटिंग, योनि सम्बन्धी व्याधियों, बुखार, सूजन एवं कुष्ट रोग के इलाज में उपयोगी होता है | लेटेक्स कामोत्तेजक टॉनिक है, जो पाइल्स एवं गोनोरिया में उपयोगी होता है | वायवीय जड़ कसैला होता है जो सिफलिस, चिड़चिड़ापन, पेचिश, यकृत के सूजन में उपयोगी है |
सॉसेज वृक्ष
बिगनोनिएसी परिवार का किजेलिया पिनाटा डीसी. मूल रूप से दक्षिण अफ्रिका के उष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाता है | यह शाखाओं से लटकते रस्सी जैसे लम्बे डंठलों में रात को खिलने वाले लाल पुष्पों वाला वृक्ष है | सुगन्धित, रस से भरे पुष्पों का परागण उनके मूलस्थानिक आवास में ही चमगादड़ों, कीटों एवं सनबर्डों द्वारा किया जाता है | परिपक्व फल लम्बे डंठलों से बड़े सॉसेज की तरह झूलते रहते हैं | वे दो फीट तक लम्बे एवं वजन में 6.8 किलो तक होते हैं | इसे सुन्दर गहरे रंग के पुष्पों एवं इसके विचित्र फल दोनों के लिए उत्सुकता एवं सजावट के तौर पर लगाया जाता है | फल की पारम्परिक प्रयोगों की एक लम्बी श्रृंखला है जिसमे त्वचा व्याधियों की स्थानीय इलाज से लेकर आंत के कीडों का इलाज शामिल हैं |
रेड सैंडल वुड
फेबेसी परिवार का टेरोकार्पस सेंटालिनस एल.एफ. रेड सेंडर्स के नाम से लोकप्रिय है जो एक मूलस्थानिक जाति है जो भारत में पूर्वी घाटों के दक्षिण भागों विशेषकर आंध्र प्रदेश में मूल रूप से केंद्रित है | यह छोटे से लेकर मध्यम आकार की कड़वा स्वाद युक्त एकदम कठोर,गहरे बैंगनी हर्टवुड वाली पर्णपाती वृक्ष है |
रेड सैंडर्स के हर्टवुड का घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है एवं तरंग सदृश्य लाल रंग युक्त वुड का बहुत मूल्य है | फर्नीचर, वाद्य यंत्र आदि में बहुतायत प्रयोग के साथ-साथ इसके लकड़ी से प्राप्त लाल रंग 'संटालिन' का प्रयोग टेक्सटाइल, फार्मास्युटिकल एवं खाद्य उद्योग में कलरिंग एजेंट के रूप में किया जाता है |
पौधे के इस अंश का प्रयोग मधुमेह के इलाज में किया जाता है | इसके लकड़ी से बने प्यालों का प्रयोग परंपरागत रूप से पानी पिने के लिए किया जाता है जिससे मधुमेह के इलाज के रूप में प्रयोग किया जाता है | इसका प्रयोग पित्तदोष, त्वचा रोगों जैसे कृमिनाशक,कामोत्तेजना एवं अलेक्सिटेरिक के साथ- साथ वोमिटिंग, प्यास, आँख की बीमारियों, अल्सर एवं खून की बीमारियों के इलाज में होता है | इसके फल के मिश्रण से बना काढ़ा पुरानी बीमारियों में कसैले टॉनिक के रूप में होता है |
चंपा
मैग्नोलिएसी परिवार का मैग्नोलिया चंपेका (एल.) बैल्ल एक्स पिरे मध्यम ऊंचाई वाली भारतीय मूल का वृक्ष है | यह पूर्वी सब हिमालयन भाग में प्राकृतिक रूप से मिलती है | भारत में, इस जाती को सजावट के लिए लगाया जाता है एवं पत्तियों, पुष्पों, बीजों,एवं फलों का प्रयोग आवश्यक तेलों एवं औषधि में किया जाता है | मीठे सुगंध वाले पुष्पों का उपयोग भारत में केस सज्जा एवं आवश्यक तेल निकालने में किए जाते हैं | इसके मुलायम लकड़ी का प्रयोग केस की पैकिंग, क्रेटस, ढुलाई वाहन, फर्निचर, नक्काशी, बेंटवुड सामाग्रियों, खिलौनों,बॉबिन्स, बैटरी सेपरेटर, पेन्सिलों, चाय की पेटी,एवं प्लायवुड तथा पानी जहाज तथा नाव निर्माण में किया जाता है |
गोल्डन बम्बू
पोएसी परिवार का बम्बूसा वुल्गारिस स्करेड. एक खुला गुच्छ वाला बम्बू जाति है | यह मूल रूप से इंडोचीन एवं दक्षिण चीन के यूनान प्रांत में पाया जाता है, लेकिन इसे दूसरे अनेक स्थानों में बहुतायत लगाया गया है एवं कई देशों की प्रकृति में यह ढल चुका है | बम्बू विशाल एवं घांस वुडी होते हैं जो प्रत्येक वर्ष कई गुनी लम्बी पूर्ण व्यास में तने के रूप में बढ़ते हैं |
इस बम्बू (बांस) के पीले तने हरी धारियों वाले होते हैं जो एक पसंदीदा जाति है और जिसे विश्वभर में लगाया जाता है |
शाखित पाम
एरेसीएसी परिवार का हायफनी थेबैका (एल.) मार्ट मूल रूप से अरब प्रायद्वीप एवं अफ्रीका के आधि उत्तरी भाग में भी पाया जाता है जहाँ यह बड़े क्षेत्र में वितरित है एवं उन स्थानों में उगने की लालसा रखती है जहाँ भूमिगत जल होती है | यह एकलिंगी पाम है जिसके नर एवं मादा पुष्प अलग अलग वृक्ष में होते हैं | यह 90 सेमी परिधि में फैलाव के साथ 10-17 मी. ऊँचा होता है | धड़ वाई आकृति में होता है एवं वृक्ष को इसके द्विधारी तने के द्वारा जो 16 शीर्षों का निर्माण करती है से आसानी से पहचाना जाता है |
शाखित पाम को प्राचीन मिश्रवासियों द्वारा पवित्र माना जाता था, एवं बीज अनेक फराहों( राजाओं ) के कब्रों में पाया जाता था |
फल का आवरण खानेयोग्य होता है जिसे पाउडर के रूप में पिसा जा सकता है या टुकड़ों में काटा जा सकता है ; पाउडर को अक्सर सुखाकर भोजन में स्वाद बढ़ाने वाले कारक के रूप में मिलाया जाता है | नवीन टहनियां स्वादिष्ट पाम कैबेज देते हैं; हाइपोकोटिल खानेयोग्य होता है, और यदि अपरिपक्व बीजों को अच्छे से पकाया जाए तो इसे भी खाया जा सकता है | पतले सूखे भूरे छाल से शीरा(गुड़), केक एवं मिठाइयाँ बनाए जाते हैं |
वृक्ष के सभी भाग उपयोगी हैं,लेकिन संभवतः सबसे महत्वपूर्ण उत्पाद इसकी पत्तियां हैं | रेशों एवं पत्रकों का प्रयोग नाइजर एवं नील नदियों के क्षेत्र में रहने वाले लोगों द्वारा बास्केट की बुनाई में किया जाता है जैसा की मनासीर के मटेरियल कल्चर में है | पत्तियों से बनने वाले अन्य वस्तुओं में चटाई, कड़े टेक्सटाइल, झाडू, रस्सियां, धागे एवं छप्पर हैं | इसके टिम्बर का प्रयोग पोस्टों एवं स्तम्भों,फर्निचर निर्माण एवं मधुमक्खियों के छत्ते में किया जाता है, एवं वृक्ष ईंधन के लिए लकड़ी प्रदान करती है | पत्तियों के डंठलों का प्रयोग बाड़े (फेंसिंग) के लिए एवं रेशों का प्रयोग टेक्सटाइल्स के लिए किया जाता है | दूसरे उत्पादों में फिशिंग राफ्ट्स, झाडू, झूलें,कारपेट, बटन एवं मनका(बीड्स) शामिल हैं |
नेपोलियनस हैट पौधा
नेपोलिओनिया इम्पेरियलिस पी.बॉव लेसिथिडाएसी परिवार का एक छोटा,सदाबहार उष्णकटिबंधीय पश्चिम अफ्रिकी वृक्ष है | इस प्रजाति का वर्णन 1804 में किया गया ठीक उसी वर्ष इसके समान नाम वाला ( नेपोलियनि डि बोनापार्ट) ने अपने आप को फ्रांस का सम्राट घोषित किया | 6 मी ऊँची,निम्न शाखित, शीर्ष घना पास वन के तलहटी में यह वृक्ष या झाड़ी पायी जाती है | अपने अनोखेपन, मनमोहन रंगीन, थालनुमा पुष्प जो पर्णवृत या सीधे धड़ एवं तने से निकलते हैं की वजह से प्रसिद्ध है | फल वृक्कनुमा बीज युक्त एक बेरी की तरह होता है जो गहरा नारंगी या ललहुन- भूरे रंग का होता है | इस जाति के वृक्काकार, ललहुन बीज एक काल्पनिक कोला बनाते हैं जिसका स्वाद वास्तविक कोला जैसा होता है | पुष्प सुगंधित होते हैं एवं बटरस्कॉच जैसा होता है |
इस जाति को सजावटी वृक्ष के रूप में आमतौर पर लगाया जाता है | पत्तियों के अंश एवं विषैले बीज किटाणुनाशक गतिविधि प्रदर्शित करते हैं एवं इनमें विविध प्रकार के गलायकोसाइड्स, टैनिन्स, प्रोटीन्स एवं सैपोनिन्स होते हैं जबकि फ्लेवोनोआइड्स, रेजिन्स एवं स्टेरोअइड्स नहीं होते हैं |
रसोगोल्ला वृक्ष/ स्टार एप्पल
सैपोटेसी परिवार का क्रिसोफाइलम कैनिटो एल. मध्यम आकार की एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी ऊंचाई धने शीर्ष के साथ 50 फीट तक होती है | पत्तियां नीचे तरह चमकदार-सुनहली होती हैं | फल गोलाकार एवं आमतौर पर माप में 2 से 3 इंच की व्यास वाली होती है | इसका क्रॉस सेक्शन तारा सदृश्य कोर प्रदर्शित करता है इसी से इसका लोकप्रिय नाम स्टार एप्पल पड़ा | यह वृक्ष वेस्ट इंडीज, पनामा एवं मध्य अमेरिका में मूल रूप से पाया जाता है | अक्सर इसे रोड किनारे या इसके खानेयोग्य फल के लिए शहरों में लगाया जाता है | इसे व्यावसायिक रूप से ऑस्ट्रेलिया एवं मेक्सिको में लगाया जाता है | जब फल को पकने के लिए वृक्ष पर छोड़ दिया जाता है तब इसका गुद्दा बहुत ही स्वादिष्ट होता है एवं इसे बिना पकाए ही खाया जाता है | इसमें एन्टीऑक्सीकारक गुण होते हैं | चाल को एक टॉनिक एवं शक्तिवर्धक माना जाता है एवं काढ़े का प्रयोग कफनाशक के रूप में किया जाता है | फल का रंग सफेद से बैंगनी में बदलता रहता है |
डबल कोकोनट
ऐरिकासी परिवार के अंतर्गत लोडोइसिया मालदिविका (जमेलिन) परसून पादप जगत में अभी तक में वर्णित सबसे बड़ा बीज वाला पौधा है | परिपक्व हो जाने पर फल का वजन लगभग 50 पाउंड तक होता है | बीज देखने में दो नारियल के बीजों का संयोजन लगता है, जिससे इसका नाम डबल कोकोनट पड़ा | यह जाति मूल रूप से 115 सेशेल्स द्वीपों में से दो में पाया जाता है | खोजकर्ताओं इसके पैतृक पौधे की खोज के पहले ऐतिहासिक रूप से इसे पश्चिम हिन्द महासागर में तैरता हुआ पाया गया था जिसे बाद में मालदीव द्वीपों से वर्णित किया गया | चूँकि ऐसी प्रकृति एवं धारणा है कि ये फल सेशेल्स द्वीपों से समुद्र से होकर मालदीव पहुंचा, जहाँ यह अंकुरित हुआ और बाद में वर्णित किया गया इसलिए यह कोको-डि-मर (कोकोनट ऑफ द सी) कहलाता है | यह विशाल पाम लगभग 1000 वर्षों तक जीवित रहता है | नर एवं मादा पौधें भिन्न(एकलिंगाश्रयी) होते हैं | यह एक मादा पौधा है जिसे भारत में समावेशित किया गया है एवं 1894 में केवल एजेसी बोस इंडियन बॉटेनिक गार्डेन में लगाया गया है | इसका एक पत्ता पूर्णरूपेण फैलने एवं परिपक्व होने में लगभग एक वर्ष लेता है | एक पूर्ण-विकसित पत्ती का प्रयोग इसके सर्वाधिक फैलाव के कारण एक झोपड़ी के छत के लिए हो सकता है | फल परिपक्व होने में 5-7 वर्ष लेता है, 10 वर्षों तक सुप्त रहता है एवं अंकुरित होने में काम से काम 3 वर्ष लेता है | इस पाम में सफलतापूर्वक फल की व्यवस्था वर्ष 2013 में नोंग नूच ट्रॉपिकल गार्डेन, थाईलैंड से पराग लाकर कृत्रिम परागण से किया गया | हाल ही में इस वृक्ष से प्रथम दो परिपक्व फल प्राप्त हुए |
जाइंट वाटर लिली
अमेजन नदी बेसिन में मूल रूप से पायी जाने वाली, जाइंट वाटर लिली वाटर लिली परिवार की सबसे बड़ी आकार वाली सदस्य है | सर्वप्रथम इसकी खोज 1801 में बोलिविया में की गयी थी एवं यह अमेजन नदी बेसिन के नदियों के अप्रवाही जल, गुयाना एवं पेंटानल में उगती है | इस पौधे की पत्तियाँ बहुत बड़ी होती है जिसकी व्यास 2-3 मी में होती है और जो पानी की सतह पर 7-8 मी की जलप्लावित डंठलों पर तैरती रहती हैं | छोर रिम सदृश्य रचना के निर्माण हेतू मूड जाते हैं | पत्ती की निचली सतह कॉपर जैसी लाल होती है | पुष्प सफेद होते हैं, पहली रात को वे खुलते हैं एवं गुलाबी हो जाते हैं, फिर दूसरी रात बैंगनी हो जाते हैं | वे व्यास में 9-12 इंच के होते हैं एवं भौरों द्वारा परागण किए जाते हैं | पुष्प भी बहुत ही सुगन्धित होते हैं |
इस वंश की दो जातियां जैसे विक्टोरिया अमेजनिका (पोएप.) जे.सी. सोवरबी एवं वि. क्रुजिनाना ए.डी. ओर्ब को गार्डेन में क्रमशः 1873 में ब्राजील एवं 1981 में सांता क्रूज से समावेशित किया गया था |
हालांकि वर्त्तमान में संकटग्रस्त नहीं समझी जाने वाली, यह पौधा बहुत ही विशेषीकृत आवास में रहती है |
माउंटेन रोज
फेबेसी परिवार का ब्राउनिया कोकिनिया जैक. धीमा- वृद्धि करने वाला, छोटा वृक्ष है जो मूल रूप से उष्णकटिबंधीय अमेरिका के मुख्यतः गुयाना, वेनेजुवेला,ब्राजील एवं त्रिनिदाद तथा टोबैगो में 6 - 8 इंच से भी ज्यादा आकार के नारंगी-लाल पुष्प युक्त शीर्षों के साथ होते हैं जो प्राथमिक रूप से केक एवं मिठाइयों के नीचे लटकते रहते हैं | केन्या के तुरकाना में इसके फल के बाहरी आवरण से बने पाउडर को पानी एवं दूध में मिलाकर छोड़ दिया जाता है जिससे हल्का शराब बनाया जाता है; अन्य देशों में पाम वाइन बनाने के लिए टर्मिनल मेरिस्टेम में बम्ब लगाया जाता है |
नक्स-वॉम ट्री
लोगिनिएसी परिवार का स्ट्रायकनोस नक्स- वोमिका एल. छोटा मुडा हुआ, मोटे धड़ युक्त मध्यम आकार वाला एक वृक्ष है | लकड़ी सफेद कठोर, पास पास में रंजित, टिकाऊ होता है | फल चिकने कठोर कवच युक्त बड़े सेब के आकार का होता है जो पकने के बाद नारंगी रंग का होता है, जो सफेद रंग के जेली जैसे गुद्दे से भरा होता है और इसमें पांच बीज भी होते हैं | बीज चपटे डिस्क की तरह होते हैं जो चिकने बालों से सघन रूप से ढ़के होते हैं और ये चिपटे भागों के केंद्र से विकिर्णित होते रहते हैं एवं बीजों को एक मनमोहक छवि प्रदान करते हैं | यह बीजों, वृक्ष के चारो ओर, हरे से लेकर नारंगी फल से निकाले गए बहुत ही जहरीली, तीव्र कड़वा अल्केलोआइड्स स्टराइचनिन एवं ब्रूसिन का बहुत बड़ा स्रोत है | नुक्स वोमिका का प्रयोग पेट की बेचैनी, वोमिटिंग, पेट दर्द, कब्ज, आंत संबंधी परेशानी, नशा, ह्रदय-जलन, अनिद्रा,खास ह्रदय बीमारियाँ, रक्त संचरण समस्याएं, आँख की बीमारियां, अवसाद, माइग्रेन सिरदर्द, नर्वस की दशाएँ, माहवारी सम्बन्धी समस्याएं, एवं बुजुर्गों में श्वसन संबंधी समस्याएं के इलाज में किया जाता है | यह एक सामान्य होमियोपैथी औषधि है जिसे पाचन समस्याओं, सर्दी से संवेदनशीलता, एवं चिढ़चिढ़ापन के लिए सलाह दी जाती है |
फ्लावर ऑफ हेवेन
फेबेसी परिवार की एमहेर्स्टिया नोबिलिस वाल अद्भुत सुन्दर पुष्पों वाली एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है | यह मूल रूप से बर्मा (म्यंमार) में पायी जाती है लेकिन इसे इसके सुन्दर पुष्पों के कारण सम्पूर्ण उष्णकटिबंधीय देशों में बहुतायत लगायी जाती है | इसका वैज्ञानिक नाम लेडी एमहर्स्ट, एक ब्रिटिश प्रकृतिवादी एवं वनस्पतिज्ञ की प्रशंसा में रखा गया है | अनोखे पुष्पों को लम्बे पुष्पवृंत, या पुष्प डंठल से लटकता हुआ देखा जा सकता है, जिसका सिरा चमकदार सिन्दूरी लाल होता है | फल (फलियां ) 11 से 20 सेमी लंबे होते हैं | वे थोड़ी कृपाण आकृति सी होती हैं, एवं बाहरी वुडी भाग बीजों के प्रसारण हेतु खुले होते हैं | यह वन में बहुत ही दुर्लभ है एवं इसे केवल कुछ ही बार मूल स्थान से संग्रहित किया गया है |
मार्शी जिमनोस्पर्म
टैक्सोडीएसी के परिवार का टैक्सोडियम डिस्टिकम (एल.) रिच भारत में इस जाति का शायद एकलौती ऐसी वृक्ष (इस गार्डेन में उगनेवाली) है जो इतनी सुरक्षित एवं अपनी निम्नवत-जड़ों को प्रदर्शित करती हुई बढ़ रही है जिसके कारण लोग इसे मैंग्रोव पौधा समझ लेते हैं | यह भी बताना रोचक है कि इस वृक्ष की पत्तियां सूख जाती हैं एवं ऐसा लगता है कि पौधा मर चूका है लेकिन पतझड़ के आगमन के साथ ही, यह पुनः हरी हो जाती है एवं विशेष पर्णपाती वृक्ष की तरह दिखने लगती है | धड़ के आधार के चारो ओर कील सदृश्य (निम्नवत जड़े) कई आकृतियों की उपस्थिति किसी के दिमाग में उत्सुकता का निर्माण करते हैं | यह पर्णपाती कोनिफर मूल रूप से संयुक्त राज्यों में होती है जहाँ यह दक्षिण-पूर्वी एवं खाड़ी तटीय मैदानों के संतृप्त एवं मौसमी मिट्टियों में उगती है | यह लुसियाना का 'राज्यकिय वृक्ष' है | यह एक लोकप्रिय सजावटी वृक्ष है जिसे इसके हलके, पंखनुमा पत्तों एवं नारंगी- भूरे से लेकर हलके लाल रंग के गिरने हेतू लगाया जाता है | इसका लकड़ी जल रोधक होने के कारण बहुत ही मूल्यवान होता है | नवंबर 1978 से एजेसी बोस इंडियन बॉटेनिक गार्डेन के इस वृक्ष में फ्रुटिंग रिकॉर्ड नहीं किया गया है |
इंडियन केन
अरेकासी परिवार का कैलेमस रोतंग एल. एक पादप जाति है जो मूल रूप से भारत, श्रीलंका एवं म्यंमार में पाया जाता है | रत्तन केन एक मजबूत लत्ता है जो 10 मी या इससे ज्यादा लम्बा होता है | तने समूहित, चढ़ते हुए 6 मी की व्यास तक के होते हैं | पौधे एकलिंगाश्रयी, एवं पुष्प आकर्षक पर्णवृंतों में गुच्छेदार रूप में होते हैं जो नुकीले कोष्ठक से घिरे होते हैं | खानेयोग्य फल लट्टूनुमा होते हैं, जो चमकदार, लाल-भूरे सजी हुई स्केलों से ढके होते हैं | इसका प्रयोग फर्निचर, बास्केट, वाकिंग स्टीक, छाता, टेबल एवं सामान्य टोकरी बनाने में किया जाता है |
ऑयल पाम
एरेकेसी परिवार का इलेइस गुनेनसिस जैक. पाम तेल का प्रमुख स्रोत है | यह मूल रूप से पश्चिम एवं दक्षिणपश्चिमी अफ्रिका में पाया जाता है एवं भारत में 1860 के दसक के दौरान ब्रिटिश यात्रियों द्वारा समावेशित किया गया था |
ऑयल पाम एक लम्बी वृक्ष है जिसकी ऊंचाई 8.3 से 20 मी होती है | फल बेर की तरह, अंडाकार- लम्बा, आवरण रेशेदार होती है जिसमें तेल होता है | यह वृक्ष विश्व में सबसे लोकप्रिय खाद्य तेल उत्पन्न करती है, जो उच्च पौष्टिक मान वाली बहुउपयोगी तेल होती है | यह सभी तेल पादपों में सर्वाधिक फलप्रद है एवं व्यावसायिक दृष्टिकोण से विकास की बडी संभावनाएं प्रदान करती है |
पारम्परिक औषधि में, इस पौधे के विभिन्न भागों का प्रयोग लैक्जेटिक एवं डाययूरेटिक, जहर के एंटीडोट, गोनोरिया, मेनोरहेजिया एवं ब्रोंकाइटिस के इलाज, सिरदर्द एवं गठिया के इलाज, ताजे जख्मों में इलाज को बढ़ावा देने एवं त्वचा संक्रमण के इलाज में होता है |
सीता अशोक
फेबेसी परिवार का सेरेका असोका (रॉक्सब.) विल्ड भारत का एक सर्वाधिक पौराणिक महत्त्व वाले एवं पवित्र वृक्षों में से एक है , एवं भारतीय पुष्प सुगंधों के रेंज में सबसे मनमोहक पुष्पों में से एक है | मूल रूप से भारत, बर्मा एवं मलाया में पाया जानेवाला, यह एक सीधा लम्बा,छोटा एवं सदाबहार, वृक्ष है जिसका छाल चिकना, धूसर- भूरा होता है | शीर्ष घाना एवं समाकृति में होता है | पुष्प सामान्यतः वर्षभर देखे जा सकते हैं, लेकिन जनवरी एवं फरवरी में नारंगी एवं सिंदूरी गुच्छों की प्रचुरता वृक्ष को मनमोहक सुंदरता में बदल देती है | आयुर्वेद के अलावा कुछ प्राचीनतम भारतीय पाठ में अशोक वृक्ष का वर्णन किया गया है | अशोक वृक्ष को पवित्र माना जाता है एवं रामायण के अलावा बुद्ध एवं जैन धर्मों में भी अशोक वृक्ष का वर्णन किया गया है | चरक संहिता जिसे 1000 ई.पू की कृति मानी जाती है उसमे अशोक वृक्ष एवं इसके औषधीय लाभों का वर्णन है |
छाल को उबालने से प्राप्त रस महिलाओं के कुछ बीमारियों के इलाज में काम आता है, एवं कलियों के गुददों का उपयोग पेचिश की इलाज में किया जाता है |
ऑल स्पाइस
माय्रटेसी परिवार के पिमेंटा डायोइका (एल.) मर्र एक मिडकैनोपि वृक्ष है जिसे जमैका पीपर या पिमेंटो के नाम से जाना जाता है जो मूल रूप से ग्रेटर एंटिल्स, दक्षिणी मेक्सिको, एवं मध्य अमेरिका में पाया जाता है और अब विश्व के गर्म भागों में लगाया जाता है | इसका नाम अंग्रेजों द्वारा 1621 के प्रारम्भ में ऑल स्पाइस रखा गया जिन्होंने इसे दालचीनी, नुटमेग एवं लौंग के स्वाद वाले मसाले के रूप में महत्त्व दिया |
ऑल स्पाइस पौधे का सूखाया हुआ फल है जिसे हरा एवं कच्चा अवस्था में चुना जाता है एवं पारम्परिक रूप से धूप में सुखाया जाता है | ताजी पत्तियां गिरी पत्तियों के रंग के समान होती हैं एवं ठीक उसी तरह से खाना पकाने में उपयोग किए जाते हैं |
महोगनी
मेलिएसी परिवार के स्वीटेनिया महागोनी (एल.) जैक. उच्च कोटि की इमारती लकड़ी प्रदान करने वाली वृक्ष का सफल समावेशन 1795 में वेस्ट इंडीज से इंडियन बॉटेनिक गार्डेन, हावड़ा में इस गार्डेन के प्रारम्भ के ठीक कुछ वर्षों बाद किया गया किया गया | उस समय के इंग्लैण्ड स्थित किव बॉटेनिक गार्डेन के निदेशक ने इंडियन बॉटेनिक गार्डेन में लगाने के लिए महोगनी की कई जातियों की आपूर्ति किया | बड़े स्तर पर यहाँ महोगनी के गुणन का कार्य किया गया एवं भारत के विभिन्न भागों में वितरित किया गया | आज यह भारत के वनों में पाए जाने वाले उच्च गुणवत्ता युक्त बेजोड इमारती लकड़ियों में से एक है | कैरीबियाई द्वीपों में मूल रूप से पाया जाने वाला यह डोमिनिकन गणराज्य का राष्ट्रीय वृक्ष है |
स्पेन एवं इंग्लैण्ड में महोगनी का प्रथम बड़ा उपयोग जहाज निर्माण में किया जाता था, एवं 18 वीं शताब्दी के दौरान यह इस उद्देश्य के लिए यूरोप में रोजगार देने वाली प्रमुख लकड़ी थी |
कैंडल वृक्ष
बिगनोनिएसी पैरवीकार का परमेंटिएरा सेरिफेरा सीम. मध्य अमेरिका में मूल रूप से पाया जाता है | यह वृक्ष 6 मी तक लम्बी होती है | विपरीत रूप से व्यवस्थित इन पत्तियाों की प्रत्येक पत्ती में तीन पत्रक होती है | पुष्प अकेली या चार तक की समूह में होती है | पांच भागों वाली दलपुंज हरी-सफेद होती है | रोचक बात यह है कि पुष्प सीधे वृक्ष की छाल से निकलते हैं | फल 60 सेमी तक लंबी, शंक्वाकार होती है | यह हरी, पकती हुई पीली एवं रचना में मोम जैसी होती है | गुद्देदार फल खानेयोग्य होता है | इसे इसके पुष्पों के लिए सजावट हेतु एवं फल के पकते समय अनोखे स्वरुप के कारण लगाया जाता है |
रेन ट्री
फेबेसी परिवार के समानिया समन (जैक.) मेरिल एक विशाल, सुन्दर एवं फैला हुआ वृक्ष है जिसे इसके छतरी जैसे सदाबहार कैनोपी, पंखनुमा पत्तियों एवं फुले हुए गुलाबी पुष्पों से आसानी से पहचाना जाता है | इसे अधिकांशतः समूहों में या गलियारे के रूप में लगाया जाता है क्योंकि इसमें तेज हवाओं से सामना करने के बाद भी अपनी समरूप आकृति को बनाए रखने की क्षमता होती है | यह तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है जिसे मूल रूप से मध्य अमेरिका से लाया गया था | इसके नाम 'रेन ट्री' का अस्तित्व अज्ञात है | यह वर्षा के दिनों में विविध रूप से पत्तियों को मोड लेती है (जिससे वृक्ष से बारिस गिर सके);आस पास के क्षेत्रों की तुलना में इस वृक्ष के नीचे बहुत अधिक घांस होती है; पत्तियों पर किकाडस के शहद सदृश्य ओंस नियमित टपकते हैं; पत्तियों की डंठलों पर से मीठी रस का कभी -कभी गिरना होता है; बहुत अधिक पुष्पन के कारण पुष्प केसर झड़ने लगते हैं ये इसके विविध गुण हैं |
इंडियन पेंडेन
पेंडेनएसी परिवार का पेंडेनस ओडोरैटिस एल. मूल रूप से दक्षिण एशिया एवं भारत में पाया जाता है तथा तटीय क्षेत्रों में उगता है | यह बारहमासी, झाड़ीदार या छोटा वृक्ष, द्विभागीय या त्रिभागीय शाखित या अनियमित फैलाव युक्त होती है | नर शूल 6-9 लम्बा बेलनाकार होते हैं | मादा पुष्पवृंत टर्मिनल मात्र एक शूलयुक्त तथा शाखित नहीं होते हैं | फल 14-30 सेमी लंबी और अंडाकार होता है |
इसे भारतीय आयुर्वेद द्वारा पारम्परिक रूप से सिरदर्द,गठिया, ऐंठन, सर्दी/फ्लू, मिरगी, जख्म, फोडे, खाज, ल्यूकोडर्मा, अल्सर, उदर शूल, हेपेटाइटिस, चेचक, कुष्ठ रोग, सिफलिस, एवं कैंसर के इलाज हेतु प्रयोग की सलाह दिया जाता है तथा कार्डियोटॉनिक, एंटीऑक्सीडेंट, डायसरिक, एवं एफ्रोडिसिएक की तरह उपयोग किया जाता है |
धड़ एवं विशाल शाखाओं का उपयोग गृह निर्माण में एवं सिढ़ियों के निर्माण में किया जाता है | इनका उपयोग कठोर तकिया, फूलदानी, एवं मछली पकड़नेवाली जाल, ग्लू के स्रोत के रूप में,या डोंगी के शीर्षावरण, गुद्देदार नारियां से क्रीम निकालने, धागा बनाने के अवयव के रूप में किया जाता है | धड़ों एवं शाखाओं का प्रयोग ईंधन की लकड़ियों में या कम्पोस्ट बनाने में किया जाता है | प्रोप या वायवीय जड़ों का उपयोग घरों की दीवारों के निर्माण एवं सहारे के लिए,बास्केट हैंडल, पेंटब्रश, एवं कूदने वाली रस्सी में किया जाता है | इनका उपयोग डाई(रंग) बनाने एवं पारम्परिक औषधियों के निर्माण में किया जाता है | चुनिंदे प्रभेदों की पत्तियों का प्रयोग पानी में डुबाकर और/या उबालकर या गर्म करके एवं डाईंग करके और फिर चटाई बनाने, बास्केट, हैट, पंखा, तकिया, खिलौना,एवं गूंथने के बर्तनों में किया जाता है | पत्तियों का प्रयोग छत निर्माण में भी होता है |
कैम्फर ट्री
लूरऐसी परिवार का सिनामोमम कैम्फरा (एल.) जे. प्रेजल एक विशाल सदाबहार वृक्ष है जो 20-30 मी तक लम्बी बढ़ती है | पत्तियां चमकदार, देखने में वैक्सी एवं मसलने पर कैम्फर की सुगंध वाली होती है | कैम्फर वृक्ष मूल रूप से चीन, जापान, कोरिया, ताइवान एवं पूर्वी एशिया के सन्निकट भागों में पाया जाता है | अब इसे विश्व के अनेक भागों में इमारती लकड़ी एवं कपूर उत्पादन हेतु लगाया जाता है | छाल को एंटीस्पास्मोडिक, डायफोरेटिक एवं एनथेलमिंटिक के रूप में प्रयोग किया जाता है | इसे ठंढ से होने वाले डायरिया में भी उपयोग किया जाता है | कैम्फर का प्रयोग बाह्य औषधि के रूप में स्पिरिट के रूप में या त्वचा सौंदर्य वृद्धिकारक हेतु लेप के रूप में किया जाता है; आतंरिक औषधि के रूप में हल्का एंटीसेप्टिक,एवं कार्मिनेटिव तथा हायपोडर्मिकली तेल में रोगाणुहीन घोल के रूप में, कार्डिएक उत्तेजक के रूप में किया जाता है | लकड़ी में किट रोधी गुण होता है |
गुग्गल
बुरसरऐसी परिवार का कोम्मीफोरा विट्टी (अर्न.)भंडारी राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्यों में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है | यह सुगन्धित शाखाओं वाली, कंटीली एवं चांदी-जैसी उलझी हुई, छिली हुई छाल युक्त लम्बी झाड़ीदार होती है | इसे आईयूसीएन रेड लिस्ट में अत्यधिक संकटग्रस्त श्रेणी के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है | पौधा भारतीय बडेलियम- एक ओलियो- गम-रेजिन का महत्वपूर्ण स्रोत है जो शाखाओं से टपकती है जिसे भारतीय चिकित्सा पद्यति में सदियों से एवं थार मरुस्थल में विभिन्न बीमारियों में जनजातियों द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है | यह गठिया, मोटापा, न्यूरोलॉजिकल व्याधि,सिफिलिटिक बीमारी, पेशाब संबंधी व्याधियाँ, त्वचा रोग, पायरिया, फुले हुए मसूड़ों, गले का अल्सर आदि में बहुत ही प्रभावशाली है | इसका बहुत अधिक प्रयोग अगरबत्तियों, एवं इत्रों में स्थिरकारक की तरह किया जाता है |
स्टोन बनाना
मुसऐसी परिवार का इनसिटी (रोक्सब.) चीसमैन भारत के पश्चिम घाटों में मूल रूप से पाया जानेवाला एक विचित्र बनाना(केला) पौधा है | केरल में इसे स्थानीय रूप से 'कल्लु वझा' या 'स्टोन बनाना' के नाम से जाना जाता है | और यह पहाड़ी क्षेत्रों या चट्टानी स्थानों में उगते हैं | यह पौधा 12 फिट तक लम्बा होता है एवं आभासी तना आधी ऊंचाई तक हो सकती है जिसका आधार फुला हुआ तथा 8 फिट की परिधि में होता है | फल गहरे भूरे बीजयुक्त लगभग 3 इंच लम्बे एवं कमोवेस त्रिभुजाकार होते हैं | ऐतिहासिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि इस जाती को 1800 ई. में आचार्य जगदीश चंद्र बोस इंडियन बॉटेनिक गार्डेन, हावड़ा में लगाया गया था |
भारतीय चिकित्सा पद्यति में स्टोन बनाना को मधुमेह के इलाज के लिए निर्धारित है | मानव बीमारियों जैसे गुर्दे की पत्थरी,डायसूरिया,ल्यूकोरिया,खसरा आदि के लिए इसके औषधीय क्षमता को अच्छा माना गया है | पुष्पों, अपरिपक्व फलों, एवं छद्म तनों को सब्जी के रूप में विशिष्ट जाति समूहों द्वारा खाया जाता है |
अफ्रीकन आर्किड नुटमेग
एनोनऐसी परिवार का मोनोडोरा मिरिस्टिका (गैर्टन) दुनल एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है | यह वृक्ष बहुत ही आकर्षक हृदयनुमा, रंगीन एवं सुगन्धित पुष्प देते हैं | पुष्प देखने में बहुत ही ज्यादा ऑर्किड जैसे लगते हैं एवं नटमेग की तरह दिखनेवाले लगभग गोले जैसे गुद्देदार फलियां होते हैं एवं इसी कारण इसका सामान्य नाम पड़ा है | सुगन्धित वैक्सी पुष्प लम्बे डंठलों से लटकती रहती है | विशाल वुडी फल में अनगिनत लम्बी आकृतियुक्त, हल्के भूरे बीज होते हैं जो सुगन्धित गूदे में अन्तः स्थापित होते हैं | बीज इस वृक्ष का आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण भाग है | इनका सबसे ज्यादा उपयोग पश्चिम अफ्रीका में सूप, मुरब्बा एवं केक में नुटमेग के स्थान पर किया जाता है | पारम्परिक औषधि की तरह, बीजों का प्रयोग शक्तिवर्धक एवं पेटदर्द में किया जाता है | कुछ लोगो के द्वारा इनके बीजों में जादुई गुण होना बताया जाता है | इन बीजों के तेल एंटीमाइक्रोबियल लक्षण दर्शाता है | कठोर टिम्बर से काम करना आसान है एवं इसे विविध काष्ठकला कार्य में उपयोग किया जाता है | एजेसी बोस इंडियन बॉटेनिक गार्डेन, हावड़ा में कियोस्क भवन के सामने इसका एक वृक्ष लगाया गया है |
बेगर्स बाउल
बिगनोनीऐसी परिवार के क्रेसेंटिया क्युजीति (एल.) जिसे कलाबश वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है यह कम बढ़ने वाला वृक्ष है जो मूल रूप से मध्य, दक्षिण अमेरिका, वेस्ट इंडीज एवं दक्षिण फ्लोरिडा में पाया जाता है | वृक्ष का गोलाकार या फैलावदार शीर्ष होता है जिसकी ऊंचाई लगभग 12 मी तक पहुँचती है | पत्तियां मुख्य रूप से पंखाकार पत्ती-डंठलों से युक्त त्रिपत्रक, एकान्तर या गुच्छेदार होते हैं | पुष्प छोटे डंठल पर घंटी आकार की पीली-हरी से लेकर मरून रंग की होती है | फल कैनन बॉल की तरह,लगभग गोल, कभी-कभी अंडाकार, कठोर आवरणयुक्त, चिकना,हरा से बैंगनी, गिरने के पहले पीला-हरा, सामान्यतः 4-5 इंच की व्यास में होता है | फल का प्रयोग परोसने एवं पीने के छोटे पात्रों के निर्माण में किया जाता है | इसे भारत में छोटे सजावटी वृक्ष के रूप में लगाया जाता है |
पुत्रनजीवा
यूफोरबीएसी रॉक्सबर्गी वॉल. एक प्रसिद्ध,मध्यम आकार का,सदाबहार वृक्ष है जो 12 मी की ऊंचाई तक बढ़ती है | यह मूल रूप से दक्षिणपूर्व एशिया,भारतीय उपमहाद्वीप, जापान, दक्षिण चीन एवं न्यू गुनिया में पाया जाता है | फल दीर्घवृत्ताभ या गोल,सफेद मखमली होता है | पारम्परिक औषधि एवं आयुर्वेद में, इसकी पत्तियों एवं फलों का प्रयोग बुखार, मांस ऐठन, जोड़ो का दर्द एवं गठिया के इलाज में किया जा रहा है |
पारा रबड़ ट्री
यूफोरबीएसी परिवार का हिविया ब्रेसिलिएनसिस (विल्ल्ड. एक्स ए. जस्स ) मूल.अर्ग. हिविया वंश का आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण सदस्य है क्योंकि इस वृक्ष से प्राप्त दूधिया लेटैक्स प्राकृतिक रबड़ का प्राथमिक स्रोत है | यह एक पर्णपाती वृक्ष है जो पत्तीदार शीर्षयुक्त होती है एवं आमतौर पर 30-40 मी लम्बी होती है | धड़ बेलनाकार होती है जिसमे सफेद या क्रीम रंग वाले लेटैक्स की प्रचुरता होती है |
पारा रबड़ वृक्ष प्रारम्भ में केवल अमेजन वर्षावन में ही उगाया जाता था | इस वृक्ष का नाम ब्राजील की दूसरी सबसे बड़ी राज्य पारा से लिया गया है,जिसकी राजधानी बेलम है | इन वृक्षों का प्रयोग मूलवासियों द्वारा रबड़ प्राप्त करने में किया जाता था जो इसके भौगौलिक वितरण के क्षेत्र में रहते थे | बढ़ती हुई मांग एवं 1839 में वल्कनीकरण प्रक्रिया की खोज ने उस क्षेत्र में रबड़ की खेती में गति आई जिससे बेलम एवं मनौस महानगरों को समृद्ध किया | सर जे.डी.हूकर, उस समय के रॉयल बॉटेनिक गार्डेन किव के निदेशक द्वारा दिए गए हिविया ब्रासिलिएन्सिस (पारा रबड़) को 1873 में सर जॉर्ज किंग ने खेती के लिए इंडियन बॉटेनिक गार्डेन,कोलकाता में लाया | उसने इन पौधों को कोलकाता में स्थापित करने का पुरजोर कोशिश किया | हालांकि उसे प्रायः निराशा का सामना करना पड़ा क्योंकि कोलकाता की जलवायु रबड़ की खेती के लिए उपयुक्त नहीं थी | बाद में उन पौधों को ब्रिटिश साम्राज्य के उपयुक्त जलवायु वाले अन्य क्षेत्रों जैसे बर्मा, मलाया, दक्षिण भारत एवं सिलोन में भेज दिया गया | अभी हमलोग देख सकते हैं कि रबड़ इन क्षेत्रों में मुख्य व्यावसायिक फसल है |