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लाइकेन

लाइकेन

लाइकेन  दो अवयवों के सहजीवी मेल को परिलक्षित करता है जिसमें मायकोबायोंट के रुप में कवक एवं फोटोबायोंट के रुप में कम से कम एक प्रकाशसंश्लेषी जीव जो सूक्ष्म शैवाल  (सामान्यतः हरित शैवाल) या सायनोबैक्टरियम युक्त या दोनों होता है | ये सम्पूर्ण विश्व में वितरित हैं एवं लगभग सभी जलवायु परिस्थितियों में जहाँ थोडी  भी अनुकूल दशाएँ उपलब्ध हैं  वहां ये मिल जाते हैं | ये भूमि के  8 प्रतिशत भाग में व्याप्त हैं जिसमें पृथ्वी के कुछ दुर्लभ वातावरण भी शामिल हैं | लाइकेन्स आर्कटिक से लेकर अंटार्कटिक, मरुस्थलों  से लेकर उष्णकटिबन्धों, समुद्रतटीय क्षेत्रों से लेकर पर्वत चोटियों तक पाये जाते हैं | कुछ तो मात्र एक ही प्रकार के आवास जैसे चूनापत्थर या बालू के टीले पसंद करते हैं जबकि अन्य विभिन्न वृक्षों, मृदा एवं चट्टानों में पाये जाते हैं उगते हैं | लाइकेन्स को उनके वृद्धि स्थल के स्वरुप के आधार पर वर्गीकृत किया गया है : कॉर्टिकोलस (पेडों के छाल पर), लिग्निकोलस (मृत काठ पर), फोलिकोलस (सजीवित हरी पत्तियों पर), टेरिकोलस (मृदा पर), सेक्सिकोलस (चट्टानों एवं पत्थरों पर), मुसिकोलस (काई पर पाये जाते हैं ); रैमिकोलस (टहनियों पर उगने वाले); साथ ही साथ मानव- निर्मित पदार्थों जैसे प्लास्टिक पर उगने वाले (प्लास्टिकोलस कहलाते हैं ) एवं लोहे के पोलों, बाड़ों आदि पर भी उगते हैं | लाइकेन्स को चार आधारभूत वृद्धि रुपों क्रुस्टोज, फोलिओज़, फ्रूटोकोज एवं स्कवामूलोज में वर्गीकृत किया गया है |

उपयोगिताएं

लाइकेन्स विविध संस्कृतियों में लोगों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं, खासकर ड्रग्स, औषधियों, सुगन्धित पदार्थों, भोजन सामग्रियों, रंजकों, जैव-निगरानी एवं अन्य उपयोगी यौगिकों के रूप में |

लाइकेन्स एवं पर्यावरण

निवासकरण के अग्रदूत: लाइकेन्स को प्राथमिक निवासकर्ता माना जाता है | ये विरान क्षेत्रों में घुस जाते हैं एवं चट्टानों के खनिज पदार्थों को भौतिक एवं रासायनिक कारकों के द्वारा विखंडित कर मृदा निर्माण में योगदान देते हैं और इस प्रकार अन्य जातियों जैसे काईयों एवं आद्रजीवों के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करते हैं |

वायु प्रदुषण के लिए जैव- नियंत्रक: लाइकेन्स अविश्वसनीय रुप उपयोगी हैं क्योंकि वे हमारे पर्यावरण के स्वास्थ्य के बारे में बताते हैं | ये वायुमंडलीय दशाओं द्वारा प्रभावित होते हैं एवं विभिन्न जातियां प्रदुषण के प्रति विभिन प्रकार की संवेदनशीलता प्रदर्शित करते हैं जिसके कारण इनका वृहत प्रयोग वायु- गुणवत्ता के जैव-सूचकों एवं जलवायु परिवर्तन संबंधी अध्ययन में किया जाता है |

लाइकेन्स एवं जलवायु परिवर्तन: लाइकेन्स वैसे क्रिप्टोगैमस में से हैं जो तीव्र पवन गति, उच्च पराबैंगनी विकिरण, अल्प वर्षा आदि जैसे कठोर जलवायुवीय दशाओं में जीवित रह सकते हैं |

लाइकेनोमेट्री:  वृद्धिस्थल के आयु के निर्धारण में इसका वृहत प्रयोग  किया जाता है | इसे लम्बे समय से भूआकृतिक अध्ययन में खासकर हिमनदीय परिदृश्य में हिमोढ़ की तिथि निर्धारण में जहाँ विशिष्ट प्रकार के लाइकेन के व्यास का प्रयोग सतह पर उद्धृत चट्टान के  अवधि निर्धारण में सूचक के रुप में किया जाता है |

भारत में लाइकेन अनुसंधान केंद्र: भारत में लाइकेन संबंधी अनुसंधान का एक शानदार यात्रा सात दशकों से भी अधिक अवधि का रहा है जो डॉ. कालीपाड़ा बिस्वास से शुरु हुआ एवं डॉ. डी.डी. अवस्थी एवं उसके विद्यार्थियों द्वारा आगे बढ़ाया गया | भारत वैश्विक लाइकेनोलॉजिकल डाटाबेस में एशियाई देशों से बहुत ज्यादा योगदान देने वाले देशों में से है | हालांकि ऐसा कहा जाता है कि अभी तक देश में लाइकेन संबंधी अनुसंधान कार्य केवल कुछ ही संगठनों द्वारा किया जा रहा है | इनमें से अपने इलाहाबाद (बीएसए). शिलांग (असम), पोर्ट ब्लेयर (पीबीएल) एवं सेन्ट्रल नेशनल हर्बेरियम (सीएनएच) क्षेत्रीय केंद्रों के साथ भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण;राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई), लखनऊ एवं अगरकर अनुसंधान संस्थान, पुणे बड़े योगदानकर्ता हैं | एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउण्डेशन, चेन्नई  लाइकेन अनुसंधान के प्रायोगिक पहलूओं के कार्य में लगा हुआ है | वर्त्तमान में कुछ अन्य भारतीय विश्वविद्यालयों ने भी लाइकेन्स के विभिन्न पहलुओं पर कार्य करना प्रारम्भ किया है

 

विविधता

लाइकेन्स भारतीय बायोटा के महत्वपूर्ण अवयव हैं एवं इसमें 2900 जातियों से भी अधिक शामिल हैं जो फायलम ऐस्कोमायकोटा के अंतर्गत विश्व के ज्ञात जातियों (19,500 एसपीपी.) का 14.8 % है और उनमें से लगभग 540 जातियां (18% से अधिक) भारतीय सीमाओं तक स्थानिक हैं | अभी तक, मात्र एक जाति-डिक्टियोनेमा इरिगेटम (बर्क एवं एम.ए.कुर्टिस ) लुकिंग, बेसिडियोमायकोटा के अंतर्गत भारत से रिपोर्ट किया गया है | ये पेड़ों के छाल, चट्टानों, मृदा, मृत काठ, सजीव पत्तों एवं 8 लाइकेनो-भौगोलिक क्षेत्रों (पूर्वी हिमालयी क्षेत्र, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र, पश्चिमी घाटों, अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूहों, केंद्रीय भारतीय क्षेत्र, गंगा की मैदानों, पश्चिमी शुष्क क्षेत्र एवं पूर्वी घाटों तथा दक्कन पठार के दूसरे सतहों में उगते हैं | पूर्वी हिमालयी क्षेत्र एवं पश्चिमी घाट भारत के सर्वाधिक लाइकेन बहुल भौगोलिक क्षेत्र हैं | लाइकेन फ़्लोरा ऑफ इंडिया पर प्रथम प्रयास डॉ. कालीपाड़ा बिश्वास द्वारा किया गया जो उस समय तात्कालिक रॉयल बॉटेनिक गार्डेन, कलकत्ता के अधीक्षक थे  जिसे अभी भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के रुप में पुनर्गठित किया गया है | बिश्वास (1947) अपने प्रकाशन में जो 'द लाइकेन फ्लोरा ऑफ इंडिया' शीर्षक से है उसमें डी.डी. अवस्थी के सहयोग से भारत, सिलोन एवं बर्मा से 116 वंशों एवं 40 परिवारों के 678 जातियों का वर्णन किया है और उनमे से 447 भारत से हैं |

बीएसआई देश के लाइकेन सिस्टमैटिक्स एवं टेक्सोनोमी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है | कई कार्यकर्ता   जैसे सी.जी. धरने (1967-), श्री के.एन.रॉय चौधरी (1971-), डॉ. के.पी. सिंह (1975-), डॉ. जी.पी. सिंहा (1984-), डॉ. टी.ए.एम. जगदीश राम (2001- आगे भी ) अपने अनुसंधान कर्मियों के साथ भारत के विभिन्न राज्यों (मुख्यतः असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड,सिक्किम, तमिलनाडू, अंडमान एवं निकोबार द्विपसमूहों, राजस्थान एवं गुजरात का कच्छ क्षेत्र,उत्तर प्रदेश, सुंदरवन एवं दार्जीलिंग की पहाड़ियों सहित पश्चिम बंगाल आदि ) में खोज कर चुके हैं एवं सेन्ट्रल नेशनल हर्बेरियम, हावड़ा (सीएएल- 8,000  प्रतिरुप), पूर्वी क्षेत्रीय केंद्र, शिलांग (असम- 21,000 प्रतिरुप ), सिक्किम हिमालय क्षेत्रीय केंद्र,गान्तोक (बीएसएचसी- 1,800 प्रतिरुप), अंडमान निकोबार  क्षेत्रीय केंद्र ,पोर्ट ब्लेयर (पीबीएल- 4,600 से अधिक प्रतिरुप), केंद्रीय क्षेत्रीय केंद्र,इलाहाबाद (बीएसए-10,500 प्रतिरुप) के लाइकेन अध्ययन में योगदान दिया है | कई इन-हाउस एवं वित्त पोषित प्रोजेक्ट जैसे ऑल इंडिया को-ऑर्डिनेटेड प्रोजेक्ट ऑन टैक्सोनॉमी - एआईसीओपीटीएक्स (फोलिकोलस लाइकेन्स ऑफ नॉर्थ-ईस्ट इंडिया, लाइकेन जेनेरा ग्राफियाना एस.एल. एंड फियोग्राफियाना इन नॉर्थ-ईस्ट इंडिया, लाइकेन फ्लोरा ऑफ़ असम, लाइकेन्स ऑफ मेहाउ डब्लूएलएस, अरुणाचल प्रदेश, लाइकेन्स ऑफ नेउरा वैली नेशनल पार्क वेस्ट बंगाल, लाइकेन्स ऑफ सुन्दरवंस बायॉरिजर्व, वेस्ट बंगाल, टैक्सोनॉमिक स्टडीज ऑन लाइकेनाइज्ड नन थेलोट्रेमोयड़ इंडियन ग्राफीडीएसी), लाइकेन फ्लोरा ऑफ नागालैंड, चेकलिस्ट ऑफ़ लाइकेन्स ऑफ इंडिया, लाइकेन्स ऑफ़ राजस्थान एवं कच्छ, गुजरात, लाइकेन्स ऑफ तराई रीजन ऑफ उत्तर प्रदेश, मैक्रो एंड माइक्रो-लाइकेन्स ऑफ सिक्किम, टैक्सोनॉमिक रिविजन ऑफ लाइकेन फैमिली रोसेलिएसी इन इंडिया एंड टैक्सोनॉमिक रिविजन ऑफ फैमिली पेरटूसारिएसी इन इंडिया एंड लाइकेन फ्लोरा ऑफ अंडमान एंड निकोबार आईलैंड्स पूर्ण किये गए |

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण तथा विभिन्न अनुसंधान संगठनों में किए गए इन अध्ययनों के परिणामस्वरुप अभी तक भारत से 406 वंशों के अंतर्गत जो 79 से भी अधिक परिवारों में सन्निहित कुल 2961 टैक्सा (2907 जातियां, 6 उपजातियां, 46 किस्म एवं 2 रुप ) का दस्तावेजीकरण किया गया है जिसे निम्नलिखित पांच ग्राफीय रुपों में विश्लेषण एवं प्रस्तुतीकरण किया जाता है।