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टेरिडोफाइट

टेरिडोफाइट

टेरिडोफाइट्स भारतीय टेरिडोफाइट्स पर सबसे प्राचीन उल्लेख आयुर्वेद संबंधी संस्कृत के प्राचीन शास्त्रों में मिलता है | चरक और सुश्रुत संहिता में मयूर सीखा (एक्टिनिओटेरिस),हंसराज एवं हंसपदी (आदिअन्तम एसपीपी) का वर्णन उनके औषधीय गुणों के साथ किया गया है | बौद्ध साहित्य में ऐसा माना जाता है कि मूनवॉर्ट्स की जाति (बोटरीचियम एसपीपी.) में विशेष प्रकार का जादुई ताकत होता है और बोटरीचियम के पौधों को शैतानी शक्तियों को दूर करने के लिए भगवान बुद्ध के निकट रखा जाता है | विश्व का लगभग 9 % टेरिडोफाइट्स भारत में या विश्व के केवल 2.5 % भूतल में ही पाया जाता है | फर्न्स एवं फर्न्स- आधारित भारतीय फ्लोरा के सर्वाधिक  वृहत पादप समूह हैं एवं इन्हें 33 परिवारों, 130 वंशों एवं 1267 जातियों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है और जिसमें 70 जातियाँ भारतीय मूल में ही है | भारत में टेरिडोफाइट्स समुद्र तल से लेकर अल्पाइन हिमालय तक भारत के सभी फायटोभौगोलिक क्षेत्रों में वितरित है जहाँ वे हाइड्रोफाइट्स, मेसोफाइट्स, लिथोफाइट, इपिफाइट, हेमिइपिफाइट, लत्तों के रुप में उगते हैं | वे सभी स्थलीय आवासों जैसे तंगघाटी, वनस्थल, ढलानों पर, घासभूमि, चट्टानों एवं दरारों पर, खुले दीवारों पर एवं पत्थरों तथा किसी किसी स्थानों पर वे झुंडनुमा झाड़ियों का भी निर्माण करते हैं | एपिफाइट्स होने के कारण टेरिडोफाइट्स के विभिन्न जातियाँ पेड़ के विभिन्न भागों जैसे पेड़ के तल, ठूंठ,शाखाओं, संधिस्थल पर भी वितरित होते हैं |

आयुर्वैदिक साहित्य के बाद भारतीय टेरिडोफाइट्स का विधिवत दस्तावेजीकरण का आरंभ यूरोपीय समूद्री यात्राओं एवं पुर्तगाली,डच,डैनिश,स्पेनिश एवं फ्रांसीसी उपनिवेशों के बसने तथा मालाबार तट पर मिशनरियों की स्थापना से हुआ | होर्टस इंडिकस मालाबारिकस (1678-1693)में हेंड्रिक वान रीडे ने मलाबार तट से 20 टेरिडोफाइट्स का दस्तावेजीकरण एवं सचित्र उल्लेखन किया है | जेम्स पेटिवर, जोहानीस बर्मन, निकोलस लॉरेंस बर्मन जॉन रे आदि अन्य वैसे प्री-लिनिएन वनस्पतिज्ञ हैं जिन्होंने भारतीय टेरिडोफाइट्स को संग्रहित या दस्तावेजीकरण किया है | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थापना उपरान्त भारत में वानस्पतिक अनुसंधानों को गति मिला है | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने भारत के सम्पूर्ण हिस्सों का सर्वेक्षण कियाकरोड़ो पौधों को संग्रहित किया, कलकत्ता उद्यान में आश्रय दिया, पश्चिम के विविध विख्यात पादपालयों में प्रतिरुपों को वितरित किया, उनका सचित्र विवरण तैयार किया, एवं कुशल वनस्पतिज्ञों के द्वारा पहचान करवाकर विभिन्न फ्लोरा में प्रकाशित करवाया | यद्यपि ईस्ट इण्डिया कंपनी द्वारा किए गए  संग्रहणों के आधार पर भारतीय टेरिडोफाइट्स के अनेक जातियों का वर्णन विभिन्न टैक्सोनॉमिक कार्यों में  यूरोप के लिनेउस, स्वार्ट्ज़, कुंजडब्लूजे. हूकर,जे.जी. बेकर,प्रेजल, स्प्रेंजल,स्प्रिंग, लेमार्क, मिल्डि, एन.एल. बर्मन, एईरोनिमस, कुम्मरली, विल्डिनोव,टी. मूर, जेनकर, तासनर,लोवी, ड्राइएंडर,रॉथ आदि ने किया | सर  डब्लूजे. हूकर ने अपने स्पीशीज फिलिकम खंड I – IV में उस समय के लगभग सभी ज्ञात भारतीय  टेरिडोफाइट्स का दस्तावेजीकरण किया साथ ही साथ उस समय उनमें से अनेक विज्ञान में नए थे|

भारतीय  टेरिडोफाइट्स अनेक रिपोर्टों एवं फ्लोरा में वालिस, ग्रिफिथ,रॉक्सबर्ग आदि द्वारा दस्तावेजीकरण एवं वर्णन किया गया | कलकत्ता जर्नल ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री (1844) में ग्रिफिथ एवं रॉक्सबर्ग ने रॉक्सबर्ग एवं उसके संग्रहणकर्ताओं द्वारा संग्रहित सभी भारतीय क्रिपटोगेम्स को सूचीबद्ध किया | पहली बार सम्पूर्ण सचित्र उदाहरण एवं विवरण सहित भारतीय टेरिडोफाइट्स का व्यापक वर्णन कॉल.आर.एच. बेडडॉम द्वारा फर्न्स ऑफ साउथर्न इंडिया (1863 – 1865),  फर्न्स ऑफ़ इंडियन  खंड 1 (1865 – 1866),फंस ऑफ ब्रिटिश इंडियन खंड 2 (1866 – 1870), सप्लीमेंट टू द फर्न्स ऑफ ब्रिटिश इंडिया(1876) एवं हैंडबुक टू द फर्न्स ऑफ ब्रिटिश इंडिया, शिलोन एंड मलय पेनिन्सुला (1883) विद सप्लीमेंट (1891) के रुप में प्रस्तुत किया गया | उसी समय सी. बी. क्लार्क ने द फर्न्स ऑफ नॉर्थन इंडिया (1980) का दस्तावेजीकरण किया एवं इसके बाद सी. डब्लू. होप के द्वारा फर्न्स ऑफ नॉर्थ वेस्टर्न हिमालय (1899 -1904 ), एच.एफ. ब्लानफोर्ड द्वारा फर्न्स ऑफ शिमला (1888, 1889) एवं ब्लेटर तथा अलमिडा द्वारा फर्न्स ऑफ बॉम्बे (1924) का दस्तावेजीकरण किया गया | उसी प्रकार बिहार एवं उड़ीसा के टेरिडोफाइट्स का दस्तावेजीकरण हाइनेस द्वारा अपने संस्मरणात्मक  पुस्तक द बॉटनी ऑफ बिहार एंड  उड़ीसा (1924) में किया गया एवं फर्न्स ऑफ मसूरी एंड देहरादून (1942), कश्मीर (1945) एवं पहलगाम (1951)  का दस्तावेजीकरण आर. आर. स्टीवर्ट द्वारा किया गया |

भारतीय स्वतंत्रता के बाद अपने क्षेत्रीय केंद्रों सहित भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण  कुछ  भारतीय विश्वविद्यालयों  जैसे पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़, पंजाबी विश्वविद्यालय,पटियाला, पुणे विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय वानस्पतिक अनुसंधान संस्थान,लखनऊ के साथ ही भारत में टेरिडोफाइट टैक्सोनॉमी का उत्कृष्ट केंद्र बन गया | बीएसआई के कई टैक्सोनॉमी विशेषज्ञों जैसे जी. पाणीग्राही, एसएन पटनायक, कल्पना नाग, एनसी नायर,एनपी. बालकृष्णम, एस. चौधरी, पी. भार्गवं, डी.बी. देब, आरडी. दिक्षित, एके वैश्य, आरआर. राव, सरनाम सिंह,जे. घाटक,अंजली विश्वास,शिल्पी बासु, एमसी. विश्वास, एचसी. पांडे,ए. बेनियामिन, वीके. रावत, बृजेश कुमार आदि ने इंडियन टेरिडोफाइटिक फ्लोरा एवं लगभग 2000 अनुसंधान पेपर्स तथा दो दर्जन से भी अधिक इंडियन टेरिडोफाइट्स पर पुस्तकों के लिए योगदान दिया है | लायकोपोडिएसी ऑफ इंडिया  (दिक्षित 1987), सेलागिनेलिएसी ऑफ इंडिया  (दिक्षित 1992), डिक्शनरी ऑफ इंडियन टेरिडोफाइट्स दिक्षित एवं वोहरा (1984), सेंसस ऑफ इंडियन टेरिडोफाइट्स (दिक्षित 1984), फर्न्स एंड अलाइज ऑफ मेघालय (बैश्य एवं राव 1988), टेरिडोफाइटिक फ़्लोरा ऑफ़ अंडमान एंड निकोबार आईलैंड्स (दिक्षित एवं सिंहा 2001), टेरिडोफाइटिक फ़्लोरा ऑफ़ कुमाऊँ हिमालय खंड- 1 एवं 2, (2002, 2003), द टेरिडोफाइटिक फ़्लोरा ऑफ़ ईस्टर्न इंडिया (घोष एवं अन्य 2004), फर्न्स एंड अलाइज ऑफ अरुणाचल प्रदेश(सिंह एवं पानीग्राही 2005), सिक्किम पिक्टोरियल हैंडबुक पार्ट-1 एवं पार्ट-2 (खोलिया 2010, 2014), एन एनोटेटेड चेकलिस्ट ऑफ इंडियन टेरिडोफाइट्स खंड- 1 एवं 2 (फ्रेजर- जेनकिन्स एवं अन्य )  बीएसआई के वनस्पति विशेषज्ञों के कुछ उत्कृष्ट पुस्तकें हैं |भारत और दक्षिण पूर्व एशिया से प्राप्त  सभी पुरातन ब्रिटिश टेरिडोफाइटिक संग्रहण भारत के सीएएल एवं डीडी पादपालय में रखे गए हैं | इसके अलावा इस खजाने में पादपालय आदान- प्रदान कार्यक्रम के अंतर्गत विश्व के विख्यात पादपालयों से प्राप्त टेरिडोफाइटिक प्रतिरूपों को सीएएल में रखा गया है | इसके अतिरिक्त हमारे पास 1960 में जेनेवा से प्राप्त वालिस के पादपालय के प्रतिस्थापन हेतु  एक सुव्यवस्थित सेट है साथ ही जापान सम्बंधित पूर्वी हिमालय से प्राप्त पूर्ण सेट का संग्रहण, नेपाल से स्टैंटन, साइक्स एवं विलियम्स का पूर्ण सेट संग्रहण, ए.हेनरी के चीन से किए संग्रहण की सभी प्रतिरूपों आदि का संकलन सीएएल में है | यह भी बताना आवश्यक है कि इंडियन टेरिडोफाइट्स के अनेक टाइप- शीट्स सहित करोड़ों पादपालय शीट्स विश्व के पादपालयों जैसे के, बीएम, पी, एलई, जी, एल, यू, डब्लू, एस,जेड़, बीआर, बी, एच, एम्,सी,बीपी, , एनवाई,एमओ, यूएस आदि में संकलित हैं | भारत की आजादी के बाद भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के विभिन्न क्षेत्रीय केंद्रों के वैज्ञानिकों ने बहुत अधिक संख्या में टेरिडोफाइट्स संग्रहित किया है जिसे संबंधित पादपालयों में संकलित किया गया है एवं प्रतिरुपों को सीएएल भी स्थानांतरित किया गया है | टेरिडोफाइटिक संग्रहणों में से डी.बी. देब (असम), जी.एन.पानीग्राही (असम),ए.के. बैश्य (असम एवं अरुण.), बी.एस. खोलिया (बीएसएचसी एवं बीएसडी), ए. बेनियमिन (अरुण. एवं बीएसआई), वी.के.रावत (अरुण.एवं बीएसए), सारंबम सिंह (असम,बीएसएचसी एवं सीएएल) मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण हैं | इसके अलावा बीएसआई क्षेत्रीय केंद्रों में पदस्थापित वैज्ञानिकगण, केंद्रीय राष्ट्रीय पादपालय (सीएएल) एवं मध्य क्षेत्रीय केंद्र, इलाहाबाद (बीएसए)  के बीएसआई वैज्ञानिकगण ने पूर्वी हिमालय एवं उत्तर-पूर्वी भारत से बहुतायत टेरीडोफाइट्स का संग्रहण किया है | उनमें से डी.बी. देब (सीएएल), जी.एन. पानीग्राही (सीएएल), आर.डी. दिक्षित (सीएएल, बीएसए), एस.आर. घोष (सीएएल), बी. घोष(सीएएल), अंजली बिश्वास (सीएएल), एस.के. बासु (सीएएल) आदि के संग्रहण  महत्वपूर्ण हैं |

वर्त्तमान में सीएएल एवं बीएसआई के अन्य क्षेत्रीय केंद्रों (असम, एआर., बीएसए, बीएसडी, बीएसएचसी, बीएसआई, बीएसआईडी, बीएसजेओ, एमएच, एवं पीबीएल ) में लगभग 80,000 टेरिडोफाइट्स के पादपालय शीट्स जिसमें कुल 250 टाइप शीट्स भी शामिल हैं को आश्रय प्राप्त है |